So many assume... So few know.

                      *कृष्ण और तुलना *
जिन श्रीकृष्ण ने निष्काम प्रेम का पाठ पढाया, उन्हीं का नाम लेकर आज का इंसान विशेषकर युवा वर्ग अपनी क्षुद्र चेष्टाओं के सही होने का प्रमाण दे रहा है। "कृष्ण करे तो रासलीला और मै करूँ तो कैरेक्टर ढीला" जैसे वक्तव्य आज के युवाओं से आम ही सुनने को मिल जाएंगे। विडंबना कृष्ण से तुलना में नहीं है, जीवन का सार तो कृष्ण बनने में ही है, परंतु युवाओं द्वारा श्रीकृष्ण का गलत चित्रण करके अपने क्रियाकलापों की पुष्टि करना दुर्भाग्यपूर्ण है। रासलीला वास्तव में, श्रीकृष्ण को कामदेव के द्वारा दी गयी एक चुनौती है, जिसे श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया। शर्त के अनुसार उन्हें, अश्विन मास की पूर्णिमा को वृंदावन के रमणीय जंगलों में स्त्रियों के साथ आना होगा व पुरुष केवल वे होंगे। नियत समय पर एक सुंदर रास हुआ, ऎसा रास, जिसमें केवल परिशुद्ध प्रेम था। ऎसा रास, जिसमें स्वयं महादेव भी अपने आपको शामिल होने से रोक ना पाएं। काम शरीर से जुड़ा है परंतु जिन गोपियों को उनके परिवारजनों ने रोक लिया था, वे समाधि लगाकर आत्मिक रूप से सम्मिलित हुई। अन्तत: कामदेव बुरी तरह से विफल होकर योगेश्वर श्रीकृष्ण के चरणों में गिर पड़े व द्वारिका में उनके प्रथम पुत्र- प्रद्युम्न के रूप में जन्म लिया।



जो भी ज्ञानी युवाजन कहते हैं कि कृष्ण करे तो हम क्यों ना? सही है बन्धुओं! तुम क्यों ना, लेकिन तुम क्या! इस पर भी तो विचार करने की आवश्यकता है। क्या तुम अपने प्रेम की कल्पना भी बिना काम के कर सकते हो? क्या ऎसे प्रेम की क्षमता है तुममें जो कामारी नीलकंठ को तुम्हारी ओर खींच लाए? क्या है, तुममें वो सामर्थ्य जो पूर्णिमा की आधी रात को अनेको सुंदर स्त्रियों के होते हुए भी केवल प्रेम बरसाए, काम नहीं? यदि नहीं, तो कृष्ण से तुलना क्यों?
कृष्ण से केवल तुलना और कृष्ण बनने में अंतर है। कृष्ण वे हैं, जो मित्रता के लिए राजा होते हुए भी सारथी बन जाते हैं और अपने मित्र की रक्षा के लिए युद्ध में शस्त्र उठाकर अपने ही वचन तोड़ने का कलंक लगने की परवाह नहीं करते। वे कृष्ण, जो शिशुपाल जैसे अधर्मी द्वारा कहे असहनीय अपशब्दों को निन्यानवे बार क्षमा कर देते हैं। वे कृष्ण, जो इस संसार को कर्मों का विधान समझाने के लिए अपनी ही कुल का विनाश करवाने में भी पीछे नहीं हटते। वे कृष्ण, जो धर्म की स्थापना के लिए अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता दर्शन देकर अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करने का उपदेश देते हैं। वे कृष्ण, जिनके श्रृंगार में भी वैराग है। वे कृष्ण, जिन्होनें दिखाया कि किस तरह से मनुष्य गृहस्थ जीवन में रहकर भी अपने आप को कामनाओं से निर्लिप्त रख सकता है। वे कृष्ण, जो अपने नाम से पहले विशुद्ध प्रेम करने वाले का नाम लेना पसंद करते हैं और राधाकृष्ण कहलाते हैं।
अब कुछ गुणीजन श्रीकृष्ण के अस्तित्व व उनकी कथाओं को कपोल कल्पना की संज्ञा देंगे लेकिन रासलीला की बात आने पर श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व का अनुचित चित्रण कर अपनी स्वार्थपूर्ति से भी पीछे नहीं हटेंगे, कितना दोगला हो गया है आज का इंसान!
प्रश्न यह नहीं कि श्रीकृष्ण जैसा सर्वकला सम्पूर्ण व्यक्ति वास्तव में हुआ के नहीं अपितु महत्वपूर्ण यह है कि हमें इस व्यक्तित्व से क्या सीखने को मिलता है।
#Ru_ASeeker🍁

Comments

  1. Answers a lot many and important questions.....And gives ample food for thought.....Good going Madam Seeker.....

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    1. Thanks 💫 Bhai... Your review means a lot...

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  2. ✍बहुत ही सुन्दर और प्रेरणादायक•••• Madam #Ru_ASeeker👍🏻👍🏻
    Well Done••••💐👩‍🎓

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  3. हाल न पूछो मोहन का,
    सब कुछ राधे राधे है...!😍❤
    शुभ जन्माष्टमी! 🙏

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    1. धन्यवाद 🙏 जी.... राधे राधे
      शुभ जन्माष्टमी 🌟

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  4. सराहनीय...वास्तव में शृंगार में वैराग है..एक रहस्यात्मक तथ्य,जो अनुभवगम्य है। बहुत सरल शदों में एकात्मवाद को समझा दिया।आज युवा पीढी इतनी बात हृदयंगम कर ले तो भारतीय दर्शन कृतार्थ हो जाये.......

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    1. धन्यवाद 💫Ma'am 🌸, यह तो आपका बङप्पन है।

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  5. Replies
    1. Thanks 😊 Dear 🌸.... Your name is not shown... Who are you?

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  6. सारगर्भित और आजकल के सवालों के जबाब देता हुआ लेख, अद्भुत 👍

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    1. धन्यवाद 🙏 Sir.... कृपया अपना परिचय देंगे।

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  7. Awsm mam ....beautiful article..lord krishna ...actually unka character ..usko apnana ..or vo bhi baton se nhi ..schmuch ...wah ...
    Aapk article ki जीवंतता ko slaam ..

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