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Showing posts from August, 2019

So many assume... So few know.

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                       *कृष्ण और तुलना * जिन श्रीकृष्ण ने निष्काम प्रेम का पाठ पढाया, उन्हीं का नाम लेकर आज का इंसान विशेषकर युवा वर्ग अपनी क्षुद्र चेष्टाओं के सही होने का प्रमाण दे रहा है। "कृष्ण करे तो रासलीला और मै करूँ तो कैरेक्टर ढीला" जैसे वक्तव्य आज के युवाओं से आम ही सुनने को मिल जाएंगे। विडंबना कृष्ण से तुलना में नहीं है, जीवन का सार तो कृष्ण बनने में ही है, परंतु युवाओं द्वारा श्रीकृष्ण का गलत चित्रण करके अपने क्रियाकलापों की पुष्टि करना दुर्भाग्यपूर्ण है। रासलीला वास्तव में, श्रीकृष्ण को कामदेव के द्वारा दी गयी एक चुनौती है, जिसे श्रीकृष्ण ने स्वीकार किया। शर्त के अनुसार उन्हें, अश्विन मास की पूर्णिमा को वृंदावन के रमणीय जंगलों में स्त्रियों के साथ आना होगा व पुरुष केवल वे होंगे। नियत समय पर एक सुंदर रास हुआ, ऎसा रास, जिसमें केवल परिशुद्ध प्रेम था। ऎसा रास, जिसमें स्वयं महादेव भी अपने आपको शामिल होने से रोक ना पाएं। काम शरीर से जुड़ा है परंतु जिन गोपियों को उनके परिवारजनों ने रोक लिया था, वे समाधि लगाकर आत्मिक रूप से सम्मिलित हुई। अन्तत: कामदेव बुरी तरह से विफल ह